Liver Function (LFT) Test in Hindi - लिवर फंक्शन टेस्ट (Liver Function Test) क्या होता है और लिवर फंक्शन टेस्ट में कौन-कौन से टेस्ट होते हैं यह एक अक्सर पूछे जाने वाला प्रश्न है।
आइये आज जानते हैं की लिवर फंक्शन टेस्ट क्या होता है और यह टेस्ट क्यों करवाया जाता है।
लिवर फंक्शन टेस्ट हमारे लिवर के बारे में जानकारी देता है।
यह टेस्ट ब्लड से होता है और इस टेस्ट के लिए किसी भी तरह की फास्टिंग की जरूरत नहीं होती।
लिवर फंक्शन टेस्ट हमारे ब्लड में कुछ एंजाइम और प्रोटीन की वैल्यू बताता है।
लिवर फंक्शन टेस्ट में कुछ पैरामीटर्स होते हैं। जब हमारा लिवर सही से काम कर रहा होता है या हमारा शरीर स्वस्थ होता है तो इसकी वैल्यू नॉर्मल आती है।
लेकिन जब हमारे शरीर या लिवर में कोई दिक्कत होती है तो इसकी वैल्यू कम या ज्यादा आती हैं।
आज हम जानेंगे की लिवर फंक्शन टेस्ट में कौन-कौन से टेस्ट होते हैं, इनकी नॉर्मल वैल्यू कितनी होती है और इनका शरीर में क्या काम होता है।
लिवर फंक्शन टेस्ट के पैरामीटर्स - Parameters of Liver Function (LFT) Test in Hindi
लिवर फंक्शन टेस्ट में मुख्यता हम हमारे लिवर से निकलने वाले एंजाइम, प्रोटीन और बिलिरुबिन को नापते हैं।
आईए जानते हैं सारे पैरामीटर्स के बारे में
1) SGPT & SGOT एंजाइम्स - SGPT & SGOT in LFT Test in Hindi
SGPT को हम ALT (Alanine Aminotransferase) कहते हैं और SGOT को हम AST (Aspartate Aminotransferase) कहते हैं।
यह एंजाइम्स मुख्यता हमारे लिवर में पाए जाते हैं और थोडी सी मात्रा में यह किडनी, हार्ट, ब्रेन और माशपेशियों में भी मिलता है।
यह एंजाइम हमारे भोजन को ऊर्जा में बदलने में सहयोग करता है।
बढ़े हुए ALT & AST लेवल का मतलब होता है की आपका लिवर डैमेज है और इसी कारण यह एंजाइम हमारे लिवर से ब्लड में आ रहा है।
यह कई कारणों से हो सकता है जैसे लिवर की कोई बीमारी, फैटी लिवर, हेपेटाइटिस, लिवर इन्फेक्शन, बुखार होने पर, शरीर में कोई डैमेज होने पर, शराब के सेवन से ईत्यादि।
SGPT की नॉर्मल वैल्यू 7 से 56 के बीच होती है। जबकि SGOT की नॉर्मल वैल्यू 5 से 40 के बीच में होती है।
हालांकि यह रेंज हर लैब में थोड़ी बहुत अलग अलग होती है क्युकी अलग मशीन और इसको पता करने के अलग तरीके के कारण यह रेंज थोड़ी बहुत ऊपर नीचे हो जाती है।
लेकिन इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि हर रिपोर्ट में लैब ने अपनी नॉर्मल रेंज दे रखी होती है।
आप उस रेंज को देखकर पता लगा सकते हैं। आपको अपनी रिपोर्ट में बढ़े हुए SGPT और SGOT लेवल को देख कर घबराना नहीं चाहिए।
यह आपको सिर्फ अधूरी जानकारी ही देते हैं,
क्योंकि कई बार ज्यादा मेहनत करने या ज्यादा एक्सरसाइज करने पर भी SGPT & SGOT बढ़ जाते हैं।
पूरी और सही जानकारी के लिए आपको अन्य पैरामीटर्स पर भी ध्यान देना चाहिए या फिर अपने डॉक्टर्स से सम्पर्क करना चाहिए।
2) Alkaline Phosphatase (ALP) - ALP in LFT Test in Hindi
एल्कलाइन फास्फाटेस मुख्यता हमारे लिवर में और हड्डियों में पाया जाता है।
ALP का मुख्य काम लिवर को पोषक तत्व पहुंचाना, हड्डियों की ग्रोथ को बढ़ाना, और प्रोटीन को मेटाबोलाइज करना होता है।
ALP लेवल का बढ़ा होना हमें लिवर में खराबी, हेपेटाइटिस, बाईल डक्ट में ब्लॉकेज, गॉल ब्लैडर स्टोन या हड्डियों की समस्या को दर्शाता है।
हड्डियों की समस्या में मुख्यता ये रिकेट्स, Paget's डिजीज, बोन कैंसर, विटामिन-डी की कमी या अतिसक्रिय पैराथ्योरॉयड ग्लैंड को दर्शाता है।
ALP की वैल्यू हमारे शरीर में बदला करती है जैसे ALP की वैल्यू बच्चों में और टीनएजर्स में ज्यादा होती है
क्योंकि इस समय हमारी हड्डियों का विकास हो रहा होता है और फिर 15 से 50 की उम्र तक कम हो जाती है और फिर बुढ़ापे में आते आते बढ़ने लगती है।
गर्भावस्था के दौरान भी ALP का स्तर बढ़ जाता है।
इसीलिए जब भी टेस्ट करवाएं अपनी सही उम्र जरूर बताएं क्योंकि उसी हिसाब से इसकी नॉर्मल रेंज तय होती है।
ALP की नॉर्मल रेंज 45 IU/L से 115 IU/L के बीच होती है।
हालांकि ALP की नॉर्मल वैल्यू उम्र, लिंग के हिसाब से अलग अलग होती है।
यदि हमारा SGPT और SGOT नॉर्मल आए और ALP बढ़ा हुआ आए तो इसका मतलब है की दिक्कत आपके लिवर में नहीं हड्डियों में है।
जो औरतें बर्थ कंट्रोल पिल्स लेती हैं उनका ALP लेवल कम हो जाता है।
3) बिलिरुबिन - Bilirubin in LFT Test in Hindi
बिलिरुबिन एक हल्का ऑरेंज और पीले रंग का फ्लूइड होता है जो की हमारे रेड ब्लड सेल्स RBC के टूटने पर बनता है।
हमारा लिवर बिलिरुबिन को ब्लड से लेकर इसमें इस तरह केमिकल चेंजेज करता है की ये हमारे स्टूल या यूरीन से निकल जाए।
अगर हमारे शरीर में बिलिरुबिन की वैल्यू ज्यादा है तो इसका मतलब है की या तो हमारे रेड ब्लड सेल्स बहुत तेजी से टूट रहें है
या फिर हमारा लिवर बिलुरुबिन को ठीक से हमारे शरीर से साफ नहीं कर पा रहा।
इसका एक कारण और हो सकता है की लिवर से बिलिरुबिन को स्टूल द्वारा निकालने के रास्ते में कोई दिक्कत है।
बिलिरुबिन बढ़े होने का कारण मुख्यता हेपेटाइटिस, सिरोसिस, लिवर डैमेज, गॉल ब्लैडर स्टोन, हेमोलिटिक एनीमिया, लिवर में इंफेक्शन, लिवर का ठीक से काम ना करना होता है।
बिलिरुबिन बढ़े होने पर हमारे शरीर का रंग हल्का पीला होने लगता है जिसे हम जौंडिस (Jaundice) भी कहते हैं।
इसमें हमारी त्वचा, आंख और नाखूनों का रंग पीला पढ़ने लगता है।
बिलिरुबिन हमारे ब्लड में दो प्रकार का होता है एक होता है डायरेक्ट बिलिरुबिन और दूसरा होता है इनडायरेक्ट बिलिरुबिन।
इनडायरेक्ट बिलिरुबिन अघुलनशील होता है और इसमें एल्ब्यूमिन जुड़ा होता है।
यह हमारे ब्लड से लिवर में सीधे जाता है और फिर हमारा लिवर इसे घुलनशील लिक्विड में बदल देता है।
इनडायरेक्ट बिलिरुबिन के बढ़े होने का मतलब होता है की या तो मरीज को हिमोलिटिक एनीमिया है या किसी इंज्यूरी के कारण स्किन में ब्लड आ रहा हो
या फिर फेफड़ों में ब्लीडिंग हो रही हो या एक अनुवांशिक समस्या भी हो सकती है।
डायरेक्ट बिलिरुबिन घुलनशील होता है और ये हमारा लिवर इनडायरेक्ट बिलिरुबिन से बनाता है।
डायरेक्ट बिलिरुबिन के बढ़े होने का मतलब है की आपका लिवर ढंग से काम नहीं कर पा रहा है और इसके कई कारण हो सकते हैं।
डायरेक्ट और इनडायरेक्ट बिलिरुबिन को मिला कर टोटल बिलिरुबिन की वैल्यू निकाली जाती है।
जब इसकी वैल्यू असामान्य आती है तब बीमारी को अच्छे से समझने के लिए डायरेक्ट और इनडायरेक्ट बिलिरुबिन की वैल्यू देखी जाती है।
टोटल बिलिरुबिन की नॉर्मल रेंज 0.3 से 1.0 mg/dL के बीच होती है।
डायरेक्ट बिलिरुबिन की नॉर्मल रेंज 0.1 से 0.3 mg/dL के बीच होती है।
इनडायरेक्ट बिलिरुबिन की नॉर्मल रेंज 0.2 से 0.7 mg/dL के बीच होती है।
टोटल बिलिरुबिन के बढ़े होने का कारण एनीमिया, सिरोसिस, गिलबर्ट सिंड्रोम, वायरल हेपेटाइटिस, अल्कोहलिक लिवर डिजीज, गॉल ब्लैडर में पथरी या किसी दवाई के कारण भी हो सकती है।
बच्चे जब पैदा होते हैं उस समय भी कई बच्चों का बिलिरुबिन स्तर बढ़ा हुआ होता है और अगर ये 10 दिन में अपने आप कम ना हो तो इसका कारण ऑक्सीजन की कमी, कोई इन्फेक्शन या हेपेटाइटिस हो सकता है।
अगर आप कोई बहुत मेहनत वाली कसरत करते हैं तो भी आपके बिलिरुबिन का स्तर बढ़ जाता है।
कैफ़ीन का लगातार सेवन आपके टोटल बिलिरुबिन की वैल्यू को कम कर सकता है हालंकि इसका ज्यादा डाटा उपलब्ध नहीं है।
4) एल्ब्यूमिन - Albumin in LFT Test in Hindi
एल्ब्यूमिन एक प्रोटीन है जो लिवर से निकलता है। यह लिवर से निकलकर ब्लड में मिल जाता है।
हमारा लिवर जो प्रोटीन संश्लेषित करता है उसका 25% हिस्सा एल्ब्यूमिन में होता है।
एल्ब्यूमिन का मुख्य काम होता है की ये हमारे शरीर के फ्लूइड को ब्लड में ही रखे ताकि फ्लूइड किसी और टिश्यू में लीक ना होने पाए।
इसके साथ ही यह हमारे शरीर के लिए महत्वपूर्ण विटामिंस, हार्मोन्स, एंजाइम्स और दूसरे पोषक तत्व को कैरी करता है।
आपके ब्लड में एल्ब्यूमिन का कम होना किसी रोग की तरफ इशारा करता है।
एल्ब्यूमिन का कम होना मुख्यता लिवर की बीमारी, किडनी की बीमारी, कुपोषण, कोई बैक्टिरियल या वायरल इन्फेक्शन, IBD अथवा थायरॉयड में किसी समस्या को दर्शाता है।
कई गर्भनिरोधक दवाएं भी एल्ब्यूमिन का स्तर कम कर देती हैं।
किडनी फेल होने की स्थिति में एल्ब्यूमिन यूरीन से लीक होने लगता है इसके कारण भी अल्बुमिन का स्तर कम हो जाता है।
एल्ब्यूमिन की नॉर्मल वैल्यू 3.4g/dL से 5.4 g/dL होती है।
अगर आपके शरीर में एल्ब्यूमिन का स्तर ज्यादा है तो इसका मतलब है की आपको कोई एक्यूट इन्फेक्शन हुआ है या आप की त्वचा जली है या आपकी अभी हाल में ही सर्जरी हुई है या आपको हार्ट अटैक हुआ है।
हालंकि जो लोग इन्सुलिन पर हैं या कोई स्टेरॉइड ले रहें हैं उनका भी अल्बुमीन का स्तर बढ़ जाता है।
5) टोटल प्रोटिन - Total Protein in LFT Test in Hindi
टोटल प्रोटीन हमारे ब्लड में प्रोटीन की मात्रा बताता है। प्रोटीन हमारे शरीर के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।
टोटल प्रोटीन टेस्ट से हम मुख्यता किडनी की बीमारी, लिवर की बीमारी और कुपोषण के बारे में सही जानकारी ले सकते हैं।
टोटल प्रोटीन कम होने का मतलब है की आपको लिवर या किडनी संबंधित बीमारी है।
इसका एक और कारण हो सकता है की आपका शरीर प्रोटीन को सही से डाइजेस्ट नहीं कर पा रहा या फिर आप कुपोषण का शिकार हैं।
अगर आपका टोटल प्रोटीन हाई है तो इसका मतलब है की या तो आपका शरीर डिहाइड्रेटेड है या आपको विशेष प्रकार का कैंसर हो सकता है,
इसके अलावा यह लंबे समय से चले आ रहे इंफेक्शन, हेपेटाइटिस, एचआईवी या बोन मैरो में समस्या को भी दर्शाता है।
इसको कन्फर्म करने के लिए आपको आगे के टेस्ट करवाने पड़ सकते हैं। हमारा लिवर दो तरह के प्रोटीन बनाता है एल्ब्यूमिन और ग्लोबुलिन।
एल्ब्यूमिन के बारे में हम ऊपर पढ़ चुके हैं जबकि ग्लोबुलिन एक ऐसा प्रोटीन होता है जिसका कुछ भाग हमारा लिवर बनाता है और कुछ भाग हमारा इम्यून सिस्टम।
ग्लोबुलिन हमारे शरीर के महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को कैरी करता है और साथ में इन्फेक्शन के विरुद्ध काम करता है।
टोटल सीरम प्रोटीन टेस्ट हमारे शरीर में एल्ब्यूमिन और ग्लोबुलिन दोनों को बताता है जिसे हम A/G Ratio कहते हैं। A/G Ratio का कम या ज्यादा होना हमारे लिए अच्छा नहीं होता।
एक स्वस्थ शरीर में एल्ब्यूमिन की मात्रा ग्लोबुलीन से ज्यादा होती है। अगर आपका A/G Ratio कम है तो इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे
ऑटोइम्यून बीमारी, ट्यूमर, बोन मैरो की बीमारी, किडनी में समस्या, सिरोसिस ईत्यादि।
अगर आपका A/G Ratio हाई है तो इसका मतलब है की आपको किडनी, लिवर के अलावा आतों की समस्या और ल्यूकेमिया भी हो सकता है।
टोटल प्रोटीन की नॉर्मल वैल्यू 6.3 से 7.9 g/dL होती है।
ग्लोबुलिन की नॉर्मल वैल्यू 2 से 3.5 g/dL होती है।
हर लैब में यह रेंज अलग अलग होती है। गर्भावस्था के दौरान टोटल प्रोटीन की वैल्यू बढ़ जाती है।
6) Gama Glutamyl Transferase - GGT in LFT Test in Hindi
GGT एंजाइम हमारे शरीर के कई अंगों में पाया जाता है लेकिन इसकी सबसे ज्यादा मात्रा लिवर में होती है।
GGT की बढ़ी हुई वैल्यू डैमेज लिवर या बाइल डक्ट में समस्या को बताता है।
जब भी हमारे लिवर में दिक्कत होती है या बाइल डक्ट का मार्ग अवरूद्ध होता है ज्यादातर स्टोन या ट्यूमर के कारण तो सबसे पहले GGT की वैल्यू ही बढ़ जाती है।
यह सबसे ज्यादा संवेदनशील लिवर एंजाइम होता है। हालंकि अकेले GGT टेस्ट को इतनी अहमियत नहीं दी जाती
क्युकी यह कई कारणों से बढ़ सकता है लेकिन ALP बढ़े होने के साथ अगर GGT बढ़ा हो तो ये डैमेज लिवर को सही से दर्शाता है।
जो लोग मदिरा का सेवन करते हैं उनका भी GGT काफी बढ़ा होता है। GGT थोड़े से मदिरा सेवन से भी बढ़ जाता है।
अगर GGT की वैल्यू अपनी नॉर्मल वैल्यू से 5 से 30 गुना बढ़ी है तो इसका मतलब है की आपके बाइल डक्ट में कोई अवरोध है।
यह सामान्यतः गॉल ब्लैडर स्टोन के कारण होता है। GGT की नॉर्मल वैल्यू 9 से 48 के बीच होती है।
हालंकि यह रेंज उम्र, जेंडर और लैब में लगी मशीन की काम करने की प्रक्रिया के हिसाब से बदला करती है। इसीलिए आपके रिपोर्ट में जो रेंज दी जाय उसके हिसाब से आकलन करें।
7) Lactate Dehydrogenase - LDH in LFT Test in Hindi
एलडीएच एक ऐसा एंजाइम होता है जो हमारे शरीर के सभी सेल्स में पाया जाता है। एलडीएच हमारे शरीर में शुगर को एनर्जी में बदलने का काम करता है।
एलडीएच टेस्ट से हम हमारे ब्लड में LDH की वैल्यू नापते हैं। जब हमारे शरीर के सेल्स डैमेज या डेड हो जाते हैं तो यह एंजाइम सेल से हमारे ब्लड में आ जाता है।
इस टेस्ट से हमें लिवर, किडनी, हार्ट, पैंक्रियाज, ब्रेन और मसल्स में हुए किसी भी डैमेज की जानकारी मिलती है।
LDH की नॉर्मल वैल्यू 140 U/L से 280 U/L के बीच होती है।
हालंकि इसकी नॉर्मल रेंज उम्र, जेंडर और लैब के हिसाब से अलग अलग होती है इसलिए अपनी रिपोर्ट पर दी गई रेंज को ही सही रेंज माने।
LDH आपको सेल में डैमेज बताता है लेकिन किस अंग के सेल में डैमेज है उसके लिए आगे के टेस्ट किए जाते हैं जैसे LD-1, LD-2, LD-3, LD-4, LD-5
LD-1 हमारे हार्ट में और रेड ब्लड सेल्स में अधिक पाया जाता है
LD-2 हमारे व्हाइट ब्लड सेल्स में अधिक पाया जाता है
LD-3 हमारे फेफड़ों में अधिक पाया जाता है
LD-4 हमारी किडनी, पैंक्रियाज और प्लेसेंटा में अधिक होता है
LD-5 हमारे लिवर और मांशपेशियों में अधिक पाया जाता है
जो लोग विटामिन C अधिक मात्रा में ले रहें हैं या जिनका प्लेटलेट्स काउंट ज्यादा है उनका भी LDH बढ़ा रहता है।
LDH का कम होना कोई समस्या नहीं है।
नोट -:
लिवर फंक्शन टेस्ट के सारे पैरामीटर्स ज्यादातर एक दुसरे पर निर्भर करते हैं। किसी एक का बढ़ा या कम होना किसी बीमारी की सही व्याख्या नहीं करता।
इसीलिए यह सारे टेस्ट एक साथ करवाएं जाते हैं ताकी डॉक्टर को एक सही दृष्टिकोण मिल पाए।
इसके साथ ही इनमें से ज्यादातर पैरामीटर्स की वैल्यू उम्र, लिंग और लैब की मशीन की कार्यक्षमता पर भी निर्भर करती है।
हर लैब की वैल्यू अलग अलग होती है इसलिए आपको रिपोर्ट की रेंज के हिसाब से ही आकलन करना चाहिए।
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