D Dimer Test In Hindi - D-Dimer जिसे हम Fibrin Degradation Fragment Test भी कहते हैं, हमारे शरीर में ब्लड क्लोटिंग की स्तिथि को बताता है।
तो चलिए जानते है विस्तार से की डी डाइमर (d dimer test in hindi) टेस्ट क्यों होता है और D-dimer टेस्ट क्यों करवाया जाता है।
D-dimer टेस्ट क्या होता है - What is D Dimer Test in Hindi
D-dimer Test हमारे ब्लड में D-dimer की मात्रा को नापता है।
D-dimer हमारे ब्लड में प्रोटीन का एक फ्रेगमेंट यानी की छोटा टुकड़ा होता है जो तब बनता है जब ब्लड का क्लॉट (Blood Clot) हमारे शरीर में घुलता है।
D-dimer हमारे शरीर में हमेशा बना करता है लेकिन इसकी मात्रा बहुत कम होती है।
यह तब तक पकड़ में नहीं आता जब तक हमारा शरीर इसे अधिक मात्रा में ना बनाने लगे।
खून का जमना हमारे शरीर का एक नैचुरल प्रॉसेस है और यह बहुत जरूरी भी है।
अगर खून ना जमे तो हमारे शरीर से खून बहता रहेगा और फिर खून की कमी से इन्सान की मृत्यु हो जायेगी।
जब भी हमें चोट लगती है तो हमारा शरीर एक प्रकार का प्रोटीन जिसे फाइब्रिन कहते हैं का जाल बनाता है।
प्लेटलेट्स फाइब्रिन के साथ मिल कर खून को जमने में सहायता करता है ताकि चोट जल्दी ठीक हो सके।
जब चोट ठीक हो जाती है और हमारे शरीर को क्लाॅट की कोई आवश्यकता नहीं होती है तो हमारा शरीर एक एंजाइम बनाता है जिसे प्लासमीन (Plasmin) कहते हैं।
प्लासमीन ब्लड क्लॉट को छोटे छोटे फ्रेगमैंट में तोड़ देता है ताकी ये आसानी से निकल जाएं।
इन्हीं छोटे छोटे फ्रेगमैंट को D-dimer या फाइब्रिन डिग्रेडेशन प्रॉडक्ट कहते हैं।
D-dimer का बढ़ा होना क्या दर्शाता है - Reason for High D-Dimer Test in Hindi
D-dimer के स्तर का खून में बढ़ा होना कई बीमारियों को दर्शाता है जैसे
1) PE - Pulmonary Embolism
Pulmonary embolism का मतलब हमारे फेफड़ों में ब्लड क्लॉट होना।
यह तब होता है जब हमारे शरीर के किसी भाग का ब्लड क्लाट हमारे खून से होता हुआ फेफड़ों में जमा हो जाता है।
यह एक बहुत ही खतरनाक स्तिथि होती है। अगर इसे जल्द ठीक ना किया जाए तो मरीज की मौत हो सकती है।
2) DVT - Deep Vein Thrombosis
यह एक ऐसी कंडीशन होती है जब हमारी नसों (Deep Vein) में कोई ब्लड क्लॉट जमा हो जाता है और वो खून के बहने का रास्ता रोकने लगता है।
यह हमारे शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है। खासतौर पर यह हमारे पैर के निचले भाग में, जांघों में, पेल्विस में, हाथ में, दिमाग में, लिवर में, किड़नी में या आतों में हो सकता है।
यह एक बहुत खतरनाक स्तिथि होती है और मरीज को तुरंत ईलाज की जरूरत होती है अन्यथा मरीज की मृत्यु हो सकती है।
3) DIC - Disseminated Intravascular Coagulation
DIC का मुख्य कारण होता है हमारे शरीर में ढेर सारे ब्लड क्लाट का बनना। यह तब बनता है जब हमारे शरीर के अंग डैमेज होने लगते हैं।
यह एक मेडिकल इमरजेंसी होती है और मरीज को तुरंत हॉस्पिटल में भर्ती करवाना चाहिए।
4) स्ट्रोक - Stroke
स्ट्रोक तब होता है जब हमारे ब्रेन में कोई ब्लड क्लॉट फंस जाता है और ब्लड को बहने से रोक देता है। इस कारण ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है।
इसके अलावा प्रेगनेंसी, हार्ट डिजीज, सर्जरी, इंफेक्शन या किसी चोट में भी D-dimer की वैल्यू बढ़ जाती है।
कौन से लक्षण होने पर D-dimer टेस्ट करवाना चाहिए - Symptoms For High D-dimer Test in Hindi
1) पैरों में सूजन और दर्द
2) सांस लेने में दिक्कत
3) Covid-19 होने पर
4) खांसी में खून आना
5) हृदय की धड़कन तेज होना
6) सीने में दर्द
7) अचानक से पसीना आना
8) मूर्छित होना
9) किसी चोट लगने की स्तिथि में
10) कोई सर्जरी होने पर
11) कैंसर होने पर
12) ब्लड क्लोटिंग की बीमारी होने पर
13) एंटीफोस्फोलिपिड सिंड्रोम होने पर
D-dimer टेस्ट पॉजिटिव होने का क्या मतलब है - Positive D dimer Test Result in Hindi
अगर आपका D-dimer टेस्ट पॉजिटिव आता है या नॉर्मल वैल्यू से ज्यादा आता है तो इसका मतलब है की आपके ब्लड क्लॉटिंग में समस्या आ रही है
और आपको ऊपर लिखी गई बीमारियों में से कोई हो सकती है। इसलिए आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
D dimer टेस्ट की नॉर्मल वैल्यू क्या होती है - D Dimer Normal Range in Hindi
D-dimer टेस्ट की नॉर्मल वैल्यू 0.50 होती है। अगर D-dimer की रेंज 0.50 से कम आ रही है तो इसका मतलब है की आपका D-dimer टेस्ट निगेटिव है।
यदि यह वैल्यू इससे अधिक आ रही है तो इसका मतलब है की आपका रिजल्ट पॉजिटिव है और आपको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
D dimer टेस्ट की कीमत कितनी होती है - Cost of D dimer Test in Hindi
D-dimer टेस्ट की कीमत 1200 रुपए के करीब होती है। हर शहर में यह कीमत अलग अलग होती है।
D-dimer टेस्ट का Covid-19 में क्या रोल है
D-dimer टेस्ट Covid-19 के मरीज में ब्लड के थक्के के जमने के बारे में पता लगाने में किया जाता है।
वायरस के कारण मरीज के फेफड़ों में ब्लड के थक्के जमने लगते हैं।
जिसके कारण मरीज ठीक से सांस नहीं ले पाता और साथ में ब्लड भी ढंग से नहीं बह पाता।
थक्कों की मात्रा फेफड़ों में जितनी ज्यादा होगी उतनी ही D-dimer की वैल्यू ज्यादा आयेगी और मरीज को उतनी ही अधिक ऑक्सीजन की जरूरत होगी।
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नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी में कौन बेहतर है और क्यों
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बहुत अच्छा
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