डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जो हमारी असंतुलित जीवनशैली के कारण होती है।
पूरे विश्व में मधुमेह के मरीज दिन प्रति दिन बढ़ते ही जा रहें हैं।
भारत में भी लाखों मरीज मधुमेह से पीड़ित हैं।
डायबिटीज में शरीर या तो इंसुलिन बिल्कुल नहीं बना पाता या बहुत ही कम बना पाता है।
जिसके कारण हमारे शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ने लगती है और यह बढ़ी हुई शुगर हमारे शरीर के अन्य अंगों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देती है।
डायबिटीज दो प्रकार की होती है एक टाईप 1 और दूसरी टाईप 2, आईए जानते हैं क्या होता है इनमें अंतर
डाइबिटीज क्या है
जो भी भोजन हम लेते हैं उससे शरीर को ऊर्जा मिलती है।
हमारा शरीर जो भी हम खाते हैं उसमें मौजूद शुगर को एनर्जी में बदलता है।
जिससे की हमारा शरीर चलता है।
शुगर को एनर्जी में बदलने के लिए इंसुलिन का मुख्य रोल होता है और ये पैंक्रियाज में बीटा सैल्स बनाती है।
इंसुलिन हमारे शरीर में शुगर को नियंत्रित करता है।
जब कभी हमारे शरीर में इंसुलिन नहीं बन पाती या कम बनती है तो हमारा शरीर शुगर को नियंत्रित नहीं कर पाता और यह हमारे शरीर के सैल्स में स्टोर होने की बजाय हमारे ब्लड में आने लगती है।
शुगर की ब्लड में अधिकता को ही डाइबिटीज कहते हैं।
अगर लगातार यह स्थिति बनी रहे तो यह शुगर हमारे शरीर के अन्य अंगों को डैमेज करने लगती है।
इसको रोकने के लिए ही हमें ईलाज की आवश्कता होती है।
टाईप 1 डायबिटीज
टाईप 1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून बीमारी है।
इसमें हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम हमारे ही अंगों जैसे पैंक्रियाज पर हमला करके उसकी कार्य प्रणाली को बाधित कर देता है।
जिसके कारण इन्सुलिन का उत्पादन नहीं हो पाता और मरीज को बाहर से इंसुलिन लेना पड़ता है।
यह बीमारी अनुवांशिक होती है और बच्चों में पैदा होने के साथ ही हो जाती है।
यह उम्र के किसी भी पड़ाव पर हो सकती है।
टाईप 1 डायबिटीज में इंसुलिन लेना बहुत जरूरी होता है क्योंकि हमारा शरीर इंसुलिन बिल्कुल भी नहीं बना रहा होता है।
टाईप 2 डायबिटीज
टाईप 2 डायबिटीज हमारी लाईफ स्टाइल के कारण होती है।
यह अधिकतर 45 के बाद होती है। लेकिन आजकल यह कम उम्र के लोगों में भी देखने को मिल रही है।
मोटापा, खानपान और निष्क्रियता इसका मुख्य कारण है।
टाईप 2 डायबिटीज में मरीज का पैंक्रियाज इंसुलिन तो बनाता है लेकिन यह शरीर की जरूरत के अनुसार इंसुलिन नहीं बना पाता।
टाईप 2 डाइबिटीज को आप दवाईयों और लाईफ स्टाइल में सुधार करके कंट्रोल कर सकते हैं।
पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं में टाईप 2 डायबिटीज होने की संभावना ज्यादा होती है।
महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान भी मधुमेह हो जाता है जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है और यह बाद में ठीक भी हो जाती है।
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